Wednesday, November 22, 2017

बदलते मायने

जीना किसे कहते हैं?
सूरज का उदय,
अस्त होना.
सबेरे उठ कर चाय पीना. 
अरे! ये क्या हुआ?
अचानक से,
किसी जिन्दा शरीर को लाश बनते देखना और
इस घटना को
एक अल्पकालीन निद्रास्वपन होने की कल्पना करना
सत्य को भ्रम होने की आशा करना
और न बदलने पर हारना
घाट तक जाना
'उस शरीर' के बगैर लौटकर,
घर आना.
और पसरे सन्नाटे से दोस्ती करने की कोशिश करना.
रौशनी से भागे-भागे रहना,
पीले बल्ब को बूझा रात में,
खुली आँखों से,
स्मृतियों के भँवर में डूब जाना,
और
उस व्यक्ति को
लोगो द्वारा रात भर में ही
इंसान से देवता बनाते देखना.
सपने में उसे जीवित पा,
खिलखिलाना,
आजीवन निद्रा में रहकर
उसे किसी तरह रोक लेने की चेष्टा करना.
सूरज का उगना,
फिर खुली आँखो को मीचते हताश होना
जीवन का कोई मकसद न दिखने पर भी,
साँसों का कुहासे भरे भविष्य पर चलना,
बेधडकते हुए दिल से बेखबर,
ह्रदय का गति में रहना,
इस एहसास से रूबरू होना,
कि कितना कुछ भँवर ही है यहाँ?
ठीक स्मृतियों सा,
जैसे हमारे रिश्ते, जिम्मेदारियाँ,
जैसे इस ह्यूमन बॉडी को एक औरगैनिस्म से ज्यादा समझने वाली थीओरिस,
जैसे मन का अबोध अटूट विश्वास
कि 'वक़्त' केवल कविताओं और कहानियों में बीतता है,
पर हम तो निरंतर हैं.
जैसे ये कविता,
वो लिखने वाला,
मैं पढने वाला.
ये सत्य नहीं,
शायद भ्रम है.
सत्य तो है,
सन्नाटे में खड़ा यह अकड़ता बरगद,
जिसने अपनी छाँव में हजारों बच्चे को खेलने दिया,
और उनमे से सैकड़ों के मृत्यु का गवाह बना.
सत्य है, यह पहाड़,
जिसने असंख्य बरगदों, पीपल का जीवन, मरण देखा,
सत्य है ये धरा, जिसने पहाड़ों का उठाना, सिमटना देखा,
सत्य है?
सत्य है???
.????
.
सत्य है,
शायद यह परिवर्तन,
शायद जीवन चक्र भी उसका अंश हो,
इन फिलोसोफिकल गार्बेज से दिमाग का भारी होने पर सो जाना,
सूरज का उगना
धीरे धीरे अगल बगल की आवाज़ों के मन में आना,
कंठ में अटके बर्फ का आँखों से पिघलना
उसे दूसरों से छुपाना
और,
सन्नाटे में रो कर उसे चीर देना.
मन के अंगीठी में हर पत्थर का पिघलकर लावा बनना
और महसूसी हर भावना की भाप को.
सिसकियों से निकल जाने देना
फिर सूरज का डूबना
उगना,
अगले दिन सूरज का डूबना
उगना,
फिर से सूरज का डूबना
उगना,
चिड़िया की चहक में,
सूरज की लालिमा में,
कुछ नया ढूँढना,
चाय पीते अखबार पढ़ना,
खून वाली ख़बरों पर अटकती नज़रों को हंस कर सरका लेना
सिगरेट से धुआं उड़ा दूसरों को स्वास्थ्य के व्हाट्सप्प मैसेज भेजना
ज़िन्दगी छोटी है, इस बात को बेयक़ीनीयत से कहना,
गिरना, उठकर कपडा झाड़कर खड़े हो जाना,
फिर घडी की सूई पर आंख अटकाना,
हटाना,
काम पर जाना,
और शाम को घर लौटकर बीबी से सीनियर जादव जी की शिकायत करना
और जीन्यूज देख मोदीजी की बड़ाई करना,
फिर बच्चों में गलतियां खोज डांटना
और फिर जम्भाई लेते बिस्तर में सरक लेना,
'परिवर्तन' का विचार आने पर अचरज करना,
मुस्कुराना और सो जाना.
फिर सूरज का डूबना
उगना,
शायद जीना इसी का नाम है।


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