Thursday, November 15, 2018

माई के नाम का ख़त

तुम्हारे एक ख़त का
इंतज़ार अब भी है।
तलाश ख़त्म कहाँ हुई मेरी।
साँस टूटने तक
दरवाजे पर
आस टिकी रहेगी।
नीली अन्तर्देसी में
नीले कलम से तुम्हारी लिखावट
मायूस हो ताकती है मुझे।
कहना चाह कर भी जो कह न पाते तुम
मैं पढ़ लेती
और चार आँसू टपका लेती।
पन्नों पर आंसुओं के धब्बों पर
अँगुली फिरा
दो पल सिसक लेती हूँ कभी
जब तुम्हारे बच्चे घर पर नहीं होते।
एक ख़त और लिखो,
कि आखिरी अन्तर्देशि आए
एक ज़माना हो गया।